Best Moral Stories in Hindi ! नैतिक कहानियां हिंदी में
Best Moral Stories in Hindi ( नैतिक कहानियां हिंदी में ) हेलो दोस्तो केसों हो आप सब आज में आपके लिए लेकर आया हु “बच्चे और उनके दादाजी कहानिया” “बुद्धिमान किसान” अदभुत कहानिया बच्चों के लिए । “बुद्धिमान किसान” मजेदार कहानियां बच्चों के लिए । “गाँव का गरीब भक्त” आशा करता हु मेरे द्वारा पोस्ट की गई बच्चों के लिए कहानियां आपको बेहद पसंद आने वाली है Best Moral Stories in Hindi
दादी की पेंसिल ( Moral Stories )
रोहन अपने कमरे में उदास बैठा था उसका इंग्लिश का एग्जाम बहुत खराब हुआ था वह दुःखी था कि उसको बहुत कम मार्क्स मिलेंगे !
रोहन की दादी कमरे में आती हैं और रोहन को एक सुन्दर सी पेंसिल गिफ्ट में देती हैं रोहन कहता है कि दादी मां मुझे ये पेंसिल मत दो, मेरा एग्जाम तो खराब हुआ है इसलिए मुझे ये गिफ्ट नहीं चाहिए !
दादी जी कहती हैं – रोहन बेटा ये पेंसिल भी एकदम तुम्हारी तरह है यह पेन्सिल तुम्हे बहुत कुछ सिखाएगी
बेटा जब पेंसिल को छीला जाता है तो इसे भी ऐसे ही दर्द होता है जैसे तुम्हे अभी हो रहा है !
लेकिन पेंसिल छिलने के बाद पहले से शॉर्प और अच्छी हो जाती है और उससे अच्छी लिखाई होती है अब तुम भी आगे से बहुत मेहनत करोगे तो तुम भी पहले से ज्यादा होशियार और अच्छे बनोगे !!
रोहन खुश होकर दादी की दी हुई पेंसिल रख लेता है !
शिक्षा – मित्रों पेंसिल जब तक छिलती नहीं है तब तक उससे अच्छी लिखाई नहीं की जा सकती, वैसे ही इंसान को भी अच्छा बनने के लिए मुसीबतों का सामना करना पड़ता है !!
“आपकी आज की कठिनाइयां कल के लिए एक बहुत बड़ा सबक हैं”
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बच्चे और उनके दादाजी ( Moral Stories )
एक छोटे से गाँव के छोटे से घर में दो चतुर बालक अपने माता-पिता के साथ रहते थे। एक दिन उनके दादाजी उनके साथ रहने के लिए उनके घर आए। वह एक नाविक रह चुके थे। बच्चों को उनसे कहानियाँ सुनना बहुत अच्छा लगता था।
वह उन्हें बताते, कैसे वह समुद्री डाकुओं से लड़े, कैसे उनका सामना किया, कितनी मुसीबतों का सामना किया, धीरे-धीरे दादाजी कहानियाँ सुनाकर ऊब गए। वह अपने उम्र दराज लोगों से बातें करना चाहते थे। गाँव के पास ‘नाविक की वापसी’ नामक एक सराय थी।
बच्चों ने दादाजी को उसके बारे में बताते हुए कहा आपको वहाँ जाना चाहिए। वह नाविकों से भरा रहता है। लेकिन दादाजी ने कहा अब मैं नए दोस्त नहीं बना सकता।
बच्चों ने उस सराय के मालिक के बच्चों को बताया हमारे दादाजी एक नाविक थे। वह समुद्री डाकुओं और गड़े हुए खजाने की बहुत सी कहानियाँ जानते हैं और यह भी जानते हैं कि डाकुओं ने खज़ाना कहाँ छुपाया था।
जल्दी ही, दादाजी को सराय से निमंत्रण आने लगे। दादाजी अब अपना समय सराय में बिताने लगे और वह अब यहाँ पर खुश थे। बच्चे भी खुश थे क्योंकि अब दादाजी हमेशा उनके साथ ही रहने वाले थे।।
गरीब भक्त ( Moral Stories )
एक गाँव में एक निर्धन (गरीब) व्यक्ति रहता था। वह इतना निर्धन (गरीब) था कि मुश्किल से अपने परिवार के लिए एक वक्त का खाना जुटा पाता था। लेकिन उसने कभी भी अपनी “मुसीबतों” की शिकायत किसी से नहीं की।
उसके पास जो भी कुछ था, वह उसी से संतुष्ट था। वह देवी माँ का बहुत बड़ा भक्त था। इसीलिए वह पूजा करने के लिए हमेशा मंदिर जाता था। मंदिर जाने के बाद ही वह अपने कार्य पर जाता था ।।
एक दिन देवी माँ को अपने इस गरीब भक्त पर दया आ गई। इसलिए एक दिन सुबह-सुबह देवी ने अपनी दिव्य शक्ति से मंदिर के बाहर एक सोने के सिक्कों से भरा थैला रख दिया।
वह भक्त मंदिर आया और आँखें बंद करके मंदिर के चारों ओर देवी का ध्यान करते हुए परिक्रमा करने लगा। आँखें बंद होने के कारण वह सोने के सिक्कों से भरा थैला नहीं देख पाया और यूँ ही चला गया। यह देखकर देवी ने सोचा…
समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता” ।।
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बुद्धिमान किसान ( Moral Stories in Hindi )
एक बार की बात है एक किसान मेले से अपने घर की और लौट रहा था उसने मेले से एक भैंस खरीदी थी जब वह घने जंगल से होकर गुजर रहा था, तब अचानक वहां एक डाकू आया जिसके हाथ मे मोटा डंडा था उसने किसान का रास्ता रोक लिया।
डाकू बोला – तुम्हारे पास जो कुछ भी है, वह सब मुझे दे दो। किसान डर गया उसने अपने सारे पैसे डाकू को दे दिए फिर डाकू बोला अब मुझे तुम्हारी ये भैंस भी चाहिए यह सुनकर किसान ने भैंस की रस्सी भी डाकू के हाथ में दे दी।।
फिर किसान बोला, मेरे पास जो कुछ भी था, मैंने सब तुम्हें दे दिया। कृपा करके आप मुझे अपना डंडा दे दीजिए। डाकू ने पूछा लेकिन तुम्हें इसकी क्या आवश्यकता है? वह बोला मैं यह डंडा अपनी पत्नी को दूंगा ।।
यह डंडा देखकर वह बड़ी खुश होगी कि मैं मेले से उसके लिए कुछ तो लाया हूँ। डाकू ने डंडा किसान को दे दिया। किसान ने बिना वक्त गंवाए डाकू को जोर-जोर से मारना शुरू कर दिया।
डाकू पैसे और भैंस छोड़कर वहाँ से भाग खड़ा हुआ। इस तरह से बुद्धिमान किसान ने अपना सामान डाकू से बचा लिया।।
हमेशा दिमाग से काम लो बुद्धिमान बनो ।।
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चूहें और शेर की कहानी
यह कहानी एक शेर और चूहें की है एक बार एक शेर जंगल में सो रहा था उस समय एक चूहा उसके शरीर के ऊपर अपने मनोरंजन के लिए उछल कूद करने लगा इससे शेर की नींद ख़राब हो गयी और वो उठ गया और गुस्सा भी हो गया
उठते ही जैसे चूहे को खाने को हुआ और उसे खाने को हुआ, तब चूहे ने उससे विनती करी की उसे वो छोड़ दे और जाने दे चूहा शेर को कसम देता है की कभी यदि तुम्हे मेरी जरुरत पड़ेगी तो में जरुर तुम्हारी मदद के लिए आ जाऊंगा, चूहे की इस साहसिकता को देखकर शेर बहुत हँसा और उसे जाने दिया !!
कुछ महीनों के बाद एक दिन, कुछ शिकारी जंगल में शिकार करने आये और उन्होंने अपने जाल में शेर को फंसा लिया. वहीँ उसे उन्होंने एक पेड़ से बांध भी दिया ऐसे में परेशान शेर खुदको छुड़ाने का बहुत प्रयत्न किया लेकिन कुछ कर न सका ऐसे में वो जोर से दहाड़ने लगा ।
उसकी दहाड़ बहुत दूर तक सुनाई देने लगी, वहीँ पास के रास्ते से चूहा गुजर रहा था और जब उसने शेर की दहाड़ सुनी तब उसे आभास हुआ की शेर तकलीफ में है, जैसे ही चूहा शेर के पास पहुंचा वो तुरंत अपनी पैनी दांतों से जाल को कुतरने लगा और जिससे शेर कुछ देर में आजाद भी हो गया और उसने चूहे का धन्यवाद किया
और दोनों साथ मिलकर जंगल की और चले गए ।।
कहानी से सिख :- इस कहानी से हमें ये सिख मिलती है की उदार मन से किया गया कार्य हमेशा फल देता है ।।
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प्यारेलाल का कुत्ता (Moral Stories)
यह कहानी है एक प्यारेलाल की, एक दिन प्यारेटलाल गाँव की गलियों में घूम रहा था, उसने देखा की एक घर के बाहर एक कुत्ते का छोटा बच्चा कटोरे में खाना खा रहा है। वो कटोरा बहुत ही अनोखा था उसने सोचा इस कटोरे की कीमत बाज़ार में बहुत ज्यादा होगी लगता है, इस घर के मालिक को इस कटोरे की कद्र का नहीं पता, इसलिए कटोरे में कुत्ते के पिल्लै को खाना खिला रहा है
पिल्ले के पास बैठा उस घर के मालिक से कहा, भाई साहब मुझे आपके कुत्ते के पिल्लै अच्छे लगे, मैं दोनों के लिए 3000 रुपयों दूंगा। वैसे भी इस साधारण कुत्ते की क्या कीमत है ।
वह आदमी बोला, ‘साहब’ 3000 क्या कम हैं, मालिक बोला हाँ मुझे आप 5000 अभी दे तो कुत्ते के दोनों पिल्लै आपके हो जाएंगे ।
प्यारेलाल ने कुछ मोलभाव करना चाहा पर वो घर का मालिक नहीं माना, अनोखे कटोरे की लालच में प्यारेलाल ने उसे 5000 रूपये दे दिए, प्यारेलाल सोच रहा था की कटोरे की कीमत तो कम से कम उससे पांच गुना ज्यादा ही होगी।
कुत्ते के पिल्लो को ले जाते वक़्त प्यारेलाल ने अपना दाव खेला, भाई साहब अब जब पिल्लै मैंने खरीद ही लिया हैं, तो आप इस कटोरे का क्या करेंगे, ये भी मैं 50रू में खरीद लेता हूँ ।
घर का मालिक बोला, नहीं साहब ये तो मैं नहीं बेचूंगा प्यारेलाल तो चकरा गया और पूछने लगा, ऐसा क्यू क्या खास है इस कटोरे में।
घर का मालिक बोला, वो तो मुझे भी नहीं मालूम, पर ये कटोरा मेरे लिए बहुत लकी हैं, पिछले महीने से मैंने जब से इस कटोरे में कुत्तों को खाना देना शुरू किया हैं, जब से मैंने पंद्रह कुत्तो को बेच दिया है ।।
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फलों का भगवान (Moral stories)
यह कहानी है एक केशवलाल की — केशवलाल का अपने घर के पास बहुत बड़ा बगीचा था वह बहुत मेहनत से अपने बगीचे की देखभाल पुरे साल भर करता था। ज्यादातर बगीचे के फल वह अपने परिवार में ही देता था और कुछ बचे हुए वह बाजार में बेचता था वह बहुत ही साधारण जीवन जीता था पर अपनी बगीचे की देखभाल बहुत अच्छे से करता था ।
एक दिन अपने बेटी के साथ जब केशवलाल फल उठा रहा था तो उसने एक अजनबी को पेड की शाखा पर बैठे हुए देखा और वह अजनबी फल तोड़ रहा था। केशवलाल यह देखकर गुस्सा हो गया और वह चिल्लाया, कौन हो तुम मेरे बगीचे के पेड़ पर क्या कर रहे हो, तुम्हें क्या शर्म नहीं आती दिन के समय तुम फल चुरा रहे हो ।
पेड पर बैठे अजनबी ने केशवलाल को देखा लेकिन उसने उसकी बात का जवाब नहीं दिया और फल उठाता रहा। केशवलाल बहुत गुस्सा हो गया और फिर चिल्लाया, पूरे साल इन पेड़ों की रखवाली मैने की है, तुम्हें मेरी इजाजत के बिना इनके फल लेने का कोई अधिकार नहीं है नीचे आ जाओ ।
पेड पर बैठे अजनबी ने जवाब दिया, मै नीचे क्यों आऊ यह भगवान का बगीचा है और मैं भगवान का सेवक हूं इसलिए मुझे यह फल तोड़ने का हक है और तुम्हें भगवान के काम और उसके सेवक के बीच में नहीं आना चाहिए, केशवलाल उसका यह जवाब सुनकर बहुत हैरान हो गया।
केशवलाल ने एक डंडी ली और उसने अजनबी को मारना शुरू कर दिया। अजनबी चिल्लाने लगा, तुम मुझे क्यों मार रहे हो तुम्हें यह करने का कोई हक नहीं है। केशवलाल ने ध्यान नहीं दिया और वह उसे लगातार मारता रहा।
अजनबी चिल्लाया तुम्हें भगवान से डर नहीं लगता तुम एक मासूम इंसान को मार रहे हो केशवलाल ने जवाब दिया मुझे डर क्यों लगेगा मेरे हाथ में जो छड़ी है वह भगवान की है और मैं भी भगवान का सेवक हूं इसलिए मुझे किसी चीज से डरने की जरूरत नहीं और तुम्हें भगवान के काम और उसके सेवक के बीच में नहीं बोलना चाहिए ।
अजनबी यह सुनकर चुप हो गया और फिर बोला, रुको मुझे मत मारो, मुझे माफ करो मैने तुम्हारे फल चुराए है यह तुम्हारा बगीचा है और मुझे फल तोड़ने के लिए तुम्हारी इजाजत लेनी चाहिए थी इसलिए मुझे माफ करो और छोड दो ।
केशवलाल यह सुनकर मुस्कुराया और बोला अब तुम्हें अपनी गलती का अहसास हो गया है तो मै तुम्हें माफ कर दूंगा इसके बाद केशवलाल ने उसे छोड़ दिया और वह अजनबी वहां से चला गया ।।
दोस्ती के वो यादगार पल
यह कहानी है कमल और मनोज की, दोनों बहुत अच्छे मित्र थे। एक बार की बात है जब दोनों रेगिस्तान से गुजर रहे थे। यात्रा में किसी बहस के दौरान कमल ने मनोज को चेहरे पे थपड मारा। मनोज ने बिना कुछ कहे रेत पे लिखा ‘मेरे अच्छे दोस्त ने मुझे थपड मारा’ ।
कुछ समय बाद दोनों को एक तालाब दिखाई दिया और वो लोग उस और चल पड़े। वहां पर दोनों नहाने लगे लेकिन कुछ समय बाद राहुल को एहसास हुआ की वो किनारे से दल दल की और चला गया है।
बहुत मुश्किल से कमल ने मनोज को खींच कर बहार निकालला दिया ।
मनोज ने बहार आने के बाद, एक पत्थर पर लिखा ”आज मेरे दोस्त ने मेरी जान बचाई”।
कमल ने मनोज से उत्सुकता से पूछा ”मैंने तुमको झापड़ मारा तो तुमनें रेत में लिखा और अभी पत्थर पे, ऐसा क्यों ?
मनोज ने उत्तर दिया ? ” जब कोई ठेश पहुचाये तो उसे रेत में लिखने से क्षमा की हवाएं मिटा देंगी। लेकिन जब कोई अच्छा करे तो उसे पत्थर पे लिख के हमेशा के लिए स्थापित कर देना चाहिए जिसे वो हमेशा दिखता रहे याद रहे ।
इतना सुनते ही कमल ने मनोज को गले लगाते हुए माफ़ी मांगी और दोनों दोस्त खुशी – खुशी अपनी मंजिल की तरफ चल दिए।।
सिख – अगर कोई तुम्हारे साथ बुरा करे तो तुम उसका बुरा मत मानो और अगर कोई तुम्हारे साथ अच्छा करे तो उसे जिंदगी भर याद रखो ।।
बिना पूछ की लोमड़ी
ये कहानी है बिना पूछ वाली लोमड़ी की एक बार की बात है जब शिकारियों के हमले से एक लोमड़ी की जान तो बच गई लेकिन उसकी पूँछ कट गई। उसे बहुत शर्म आ रही थी। अपनी शर्म छिपाने के लिए उसने सारी लोमड़ियों की सभा बुलाई और बोली,मेरे प्यारे साथियो मेरे ऊपर ईश्वरं ने विशेष कृपा की है । मेरी पूँछ हटा दी है। अब मैं सुखी और आरामदायक जीवन जी सकती हूँ।
हमारी पूँछे तो लंबी और बोझ जैसी हैं। हैरानी की बात है कि हमने अब तक अपनी पूँछों को काटा क्यों नहीं! मेरी सलाह मानो और सब लोग अपनी-अपनी पूँछे काट डालो।
एक चालाक लोमड़ी उठ खड़ी हुई और हँसते हुए बोली, अगर मेरी पूँछ भी कट गई होती, तब तो मैं तुम्हारी बात का समर्थन कर देती। लेकिन मेरी पूँछ तो ठीक – ठाक है तो मैं या बाकी लोमड़ियाँ अपनी-अपनी पूँछ क्यों काटें, तुम अपनी स्वार्थी सलाह अपने पास ही रखो।
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