Subramania Bharati 5 Famous Poems in Hindi ! सुब्रह्मण्यम भारती हिंदी कविता 2024
भारथियार एक तमिल लेखक, कवि, पत्रकार, भारतीय स्वतंत्रता समाज सुधारक और बहुभाषाविद थे। लोकप्रिय रूप से’महाकवि भारती’ के रूप में जाना जाता है, वह आधुनिक तमिल कविता के अग्रणी थे और उन्हें अब तक के सबसे महान तमिल साहित्यकारों में से एक माना जाता है। उनकी कई कृतियों में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान देशभक्ति को जगाने वाले ज्वलंत गीत शामिल थे। उन्होंने महिलाओं की मुक्ति के लिए लड़ाई लड़ी, बाल विवाह के खिलाफ, ब्राह्मणवाद और धर्म में सुधार के लिए खड़े हुए। वह दलितों और मुसलमानों के साथ एकजुटता में भी थे। Subramania Bharati 5 Famous Poems in Hindi
1882 में तिरुनेलवेली जिले के एट्टायपुरम में जन्मे और भारती की प्रारंभिक शिक्षा तिरुनेलवेली और वाराणसी में हुई और उन्होंने द हिंदू, बाला भारत, विजया, चक्रवर्ती, स्वदेशमित्रन और भारत सहित कई समाचार पत्रों के साथ एक पत्रकार के रूप में काम किया। 11 साल की उम्र में उन्हें कवियों के एक सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था जहाँ उनकी प्रतिभा को देखते हुए भारती ज्ञान की देवी सरस्वती का खिताब दिया गया। 1908 में, ब्रिटिश भारत की सरकार द्वारा भारती के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था, जिसके कारण वह पांडिचेरी चले गए जहां वे 1918 तक रहे।
सुब्रह्मण्यम भारती जब छोटे थे तभी उनकी माता का निधन हो गया था। इसके बाद 1-2 साल में पिता का भी निधन हो गया था। वह कम उम्र में ही वाराणसी चले गए थे जहाँ उनका परिचय अध्यात्म और राष्ट्रवाद से हुआ। इसका उनके जीवन पर काफी प्रभाव पड़ा और उनकी सोच में बहुत बदलाव आया। और ज्ञान के महत्व को समझा और पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने काफी दिलचस्पी ली ।
स्वदेश मित्रम,तमिल दैनिक, तमिल साप्ताहिक इंडिया और अंगेजी साप्ताहिक बाला भारतम समाचार पत्रों के प्रकाशन में शामिल रहे। उन्होंने अपने समाचार पत्रों में व्यंग्यात्मक राजनीतिक कार्टून का प्रकाशन शुरू किया था। भारती ने संगीत के लिए भी बहुत काम किया। उनके कुछ गीत अभी भी कर्नाटकी संगीत कन्सर्ट में बेहद ज़्यादा लोकप्रिय हैं।
1918 में ब्रिटिश से भारत लौटे और उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें कुछ दिनों तक जेल में रखा गया। और कुछ दिन बाद से उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा और 11 सितंबर 1921 को उनका निधन हो गया।
सुब्रह्मण्यम जी 40 साल से भी कम समय तक जीवित रहे और उन्होंने भिन्न- भिन्न क्षेत्रों में काफी काम किया है
और उनकी रचनाओं की लोकप्रियता ने ही उन्हें अमर बना दिया। Subramania Bharati 5 Famous Poems in Hindi
सुब्रमण्यम भारती
जन्म – 11 December 1882
जन्म स्थान – एट्टायपुरम, एत्तैयापुरम एस्टेट, ब्रिटिश भारत
मृत्यु – 11 September 1921
नागरिकता – ब्रिटिश शासन
व्यवसाय – लेखक, कवि, पत्रकार, शिक्षक, स्वतंत्रता सेनानी
Subramania Bharati 5 Famous Poems In Hindi
पहली 5 प्रसिद्ध रचनाएँ
● यह है भारत देश हमारा/ सुब्रह्मण्यम भारती
● वन्देमातरम / सुब्रह्मण्यम भारती
● जय भारत / सुब्रह्मण्यम भारती
● निर्भय / सुब्रह्मण्यम भारती
● नमन करें इस देश को / सुब्रह्मण्यम भारती
● चलो गाएं हम / सुब्रह्मण्यम भारती
● सब शत्रुभाव मिट जाएँगे / सुब्रह्मण्यम भारती
● आजादी का एक पल्लु / सुब्रह्मण्यम भारती
● मधुर तमिल की भूमि हमारी / सुब्रह्मण्यम भारती
● भारत माँ की अनमोल ध्वजा / सुब्रह्मण्यम भारती
● भारत देश / सुब्रह्मण्यम भारती
● आज़ादी / सुब्रह्मण्यम भारती
● नया रूस / सुब्रह्मण्यम भारती
● महात्मा गांधी / सुब्रह्मण्यम भारती
● सरस्वती-वन्दना / सुब्रह्मण्यम भारती
● नंदलाला / सुब्रह्मण्यम भारती
● बाँसुरी कन्हैया की / सुब्रह्मण्यम भारती
● कन्नम्मा, मेरी प्रिया-1 / सुब्रह्मण्यम भारती
● कन्नम्मा, मेरी प्रिया-2 / सुब्रह्मण्यम भारती
● मेरा प्रेमी कान्हा / सुब्रह्मण्यम भारती
● एक बिघ्हा ज़मीन / सुब्रह्मण्यम भारती
● ओ शिव शक्ति, मुझे बतलाओ / सुब्रह्मण्यम भारती
● अल्लाह / सुब्रह्मण्यम भारती
● ईसा मसीह / सुब्रह्मण्यम भारती
● भारत की जनता / सुब्रह्मण्यम भारती
● शिशु-गीत / सुब्रह्मण्यम भारती
● स्त्री-स्वातंत्र्य / सुब्रह्मण्यम भारती
● स्त्रियों का मुक्ति-नृत्य / सुब्रह्मण्यम भारती
● नई नारी / सुब्रह्मण्यम भारती
● डंका / सुब्रह्मण्यम भारती
● श्रम / सुब्रह्मण्यम भारती
● एक नया ज्योतिषि / सुब्रह्मण्यम भारती
● जय भेरी / सुब्रह्मण्यम भारती
● अमर रहे विशुद्ध तमिल / सुब्रह्मण्यम भारती
1.यह है भारत देश हमारा
चमक रहा उत्तुंग हिमालय, यह नगराज हमारा ही है।
जोड़ नहीं धरती पर जिसका, वह नगराज हमारा ही है।
नदी हमारी ही है गंगा, प्लावित करती मधुरस धारा,
बहती है क्या कहीं और भी, ऎसी पावन कल-कल धारा।।
सम्मानित जो सकल विश्व में, महिमा जिनकी बहुत रही है
अमर ग्रन्थ वे सभी हमारे, उपनिषदों का देश यही है।
गाएँगे यश ह्म सब इसका, यह है स्वर्णिम देश हमारा,
आगे कौन जगत में हमसे, यह है भारत देश हमारा।।
यह है भारत देश हमारा, महारथी कई हुए जहाँ पर,
यह है देश मही का स्वर्णिम, ऋषियों ने तप किए जहाँ पर,
यह है देश जहाँ नारद के, गूँजे मधुमय गान कभी थे,
यह है देश जहाँ पर बनते, सर्वोत्तम सामान सभी थे।।
यह है देश हमारा भारत, पूर्ण ज्ञान का शुभ्र निकेतन,
यह है देश जहाँ पर बरसी, बुद्धदेव की करुणा चेतन,
है महान, अति भव्य पुरातन, गूँजेगा यह गान हमारा,
है क्या हम-सा कोई जग में, यह है भारत देश हमारा।।
विघ्नों का दल चढ़ आए तो, उन्हें देख भयभीत न होंगे,
अब न रहेंगे दलित-दीन हम, कहीं किसी से हीन न होंगे,
क्षुद्र स्वार्थ की ख़ातिर हम तो, कभी न ओछे कर्म करेंगे,
पुण्यभूमि यह भारत माता, जग की हम तो भीख न लेंगे।
मिसरी-मधु-मेवा-फल सारे, देती हमको सदा यही है,
कदली, चावल, अन्न विविध अरु क्षीर सुधामय लुटा रही है,
आर्य-भूमि उत्कर्षमयी यह, गूँजेगा यह गान हमारा,
कौन करेगा समता इसकी, महिमामय यह देश हमारा।
सुब्रह्मण्यम भारती –
2. वन्देमातरम
आओ गाएँ ‘वन्देमातरम’।
भारत माँ की वन्दना करें हम ।
ऊँच-नीच का भेद कोई हम नहीं मानते,
जाति-धर्म को भी हम नहीं जानते ।
ब्राह्मण हो या कोई और, पर मनुष्य महान है
इस धरती के पुत्र को हम पहचानते ।
आओ गाएँ ‘वन्देमातरम’।
भारत माँ की वन्दना करें हम ।
वे छोटी जाति वाले क्यों हैं क्यों तुम उन्हें कहते अछूत
इसी देश के वासी हैं वे, यही वतन, यहीं उनका वज़ूद
चीनियों की तरह वे, क्या लगते हैं तुम्हें विदेशी ?
क्या हैं वे पराए हमसे, नहीं हमारे भाई स्वदेशी ?
आओ गाएँ ‘वन्देमातरम’।
भारत माँ की वन्दना करें हम ।
भारत में है जात-पाँत और हज़ारों जातियाँ
पर विदेशी हमलावरों के विरुद्ध, हम करते हैं क्रांतियाँ
हम सब भाई-भाई हैं, हो कितनी भी खींचतान
रक्त हमारा एक है, हम एक माँ की हैं संतान
आओ गाएँ ‘वन्देमातरम’।
भारत माँ की वन्दना करें हम ।
हम से है ताक़त हमारी, विभिन्नता में एकता
शत्रु भय खाता है हमसे, एकजुटता हमारी देखता
सच यही है, जान लो, यही है वह अनमोल ज्ञान
दुनिया में बनाएगा जो, हमें महान में भी महान
आओ गाएँ ‘वन्देमातरम’।
भारत माँ की वन्दना करें हम ।
हम रहेंगे साथ-साथ, तीस कोटि साथ-साथ
डाल हाथों में हाथ, तीस कोटि हाथ साथ
हम गिरेंगे साथ-साथ, हम मरेंगे साथ-साथ
हम उठेंगे साथ-साथ, जीवित रहेंगे साथ-साथ
आओ गाएँ ‘वन्देमातरम’।
भारत माँ की वन्दना करें हम ।
सुब्रह्मण्यम भारती –
3. जय भारत
कभी बुद्धिमत्ता से अपनी
जीते थे शत देश महान
विजित बहादुर उन देशों के
करते थे तेरा जय-गान
कभी धीरता गरिमा और
शौर्य भी धर्म निज खो बैठी हो
फिर भी धर्म अटल जननी
जय हो, तेरी सदैव जय हो ।।
रचना हुई कोटि ग्रंथों की,
शत देशों के प्रतिनिधि पंडित
आए विषय-ज्ञान पाने को
अतिशय मन:कामना मंडित
कभी ज्ञान का स्तर गिरने पर
परम अधोगति भी पाई हो।
फिर भी शाश्वत सत्य पर अटल
माँ तेरी जय हो, जय हो ।।
कुंठित हुई शक्ति जब वीरों
के असि की क्षमता अतुलित
घटी, ज्ञानप्रद सद्ग्रंथों की
रचना-शक्ति हुई शिथिलित
ऐसे विषम समय में भी
तुम नहीं प्रकंपित होती हो
उपयोगी सद्ग्रंथों की–
रक्षक, माता तेरी जय हो ।।
देवगगणों के लिए स्वादमय,
मधुरिम अमृत कुंभ समान।
माँ, तेरा ऐश्वर्य रहे
पूरा सागर की भाँति
पापी हृदय शक्ति तेरी
हरने का सदा यत्न करता हो।
फिर भी अक्षुण्ण निधिधारी
माता मेरी, तेरी जय हो ।।
इस भू को उत्कृष्ट किया
कर, सुखप्रद उद्योगों-धंधों को
तुमने जन्म दिया आनंद-
प्रदायक कितने ही धर्मों को
सत्य खोजने जो आए हैं
उनको सत्य दान में दी हो
हमको भी स्वतंत्रता के प्रति
आकांक्षा दी, तेरी जय हो ।।
मूल शीर्षक : ‘जय भारत
सुब्रह्मण्यम भारती –
4.निर्भय
निर्भय, निर्भय, निर्भय !
चाहे पूरी दुनिया हमारे विरुद्ध हो जाए,
निर्भय, निर्भय,निर्भय !
चाहे हमें अपशब्द कहे कोई, चाहे हमें ठुकराए,
निर्भय, निर्भय,निर्भय !
चाहे हम से छीन ली जाएँ जीवन की सुविधाएँ
निर्भय, निर्भय,निर्भय !
चाहे हमें संगी-साथी ही विष देने लग जाएँ
निर्भय, निर्भय,निर्भय !
चाहे सर पर आसमान ही क्यों न फटने लग जाए
निर्भय, निर्भय,निर्भय !!
सुब्रह्मण्यम भारती –
5. नमन करें इस देश को
इसी देश में मातु-पिता जनमे पाए आनंद अपार,
और हजारों बरसों तक पूर्वज भी जीते रहे–
अमित भाव फूले-फले जिनके चिंतन में यहीं।
मुक्त कंठ से वंदना और प्रशंसा हम करें–
कहकर वंदे मातरम्, नमन करें इस देश को ॥1॥
इसी देश में जीवन पाया, हमको बौद्धिक शक्ति मिली,
माताओं ने सुख लूटा है, जीवन का वात्सल्य भरे–
मोद मनाया है यहीं जुन्हाई में हंसकर क्वाँरेपन का।
घाटों पर, नदियों के पोखर के क्रीड़ाओं की आनंदभरी
कहकर वंदे मातरम्, नमन करें इस देश को॥2॥
गार्हस्थ्य को यहाँ नारियों ने पल्लवित किया है,
गले लगाया है जनकर सोने के-से बेटों को–
भरे पड़े हैं नभचुंबी देवालय भी इस देश में।
निज पितरों की अस्थियाँ इस माटी में मिल गईं-
कहकर वंदे मातरम्, नमन करें इस देश को॥3॥
मूल शीर्षक : ‘नाट्टु वणक्कम्’
सुब्रह्मण्यम भारती –
6. चलोगाएँ हम
हमारा नभ-चुंबी नगराज,
विश्व में इतना ऊँचा कौन?
हमारी ही भागीरथी पवित्र,
नदी इतनी गौरवमय कौन?
हमारे ही उपनिषद् महान,
श्रेष्ठतम कहे विश्व हो मौन।
जहाँ की धरती ही दिन-रात स्वर्णकिरणों की चमक रही।
चलो गाएँ हम ‘भारत की समता में कोई देश नहीं’।।
देश जो ऋषियों की तपभूमि,
जहाँ पर उपजे वीर महान,
जहाँ गूँजे नारद के गीत,
जहाँ सद्विषयों का सम्मान
जहाँ पर अतुल ज्ञान है भरा,
दिए उपदेश बुद्ध भगवान।
हिंद से अधिक, विश्व में कोई देश कहीं प्राचीन नहीं।